"कर्मसंन्यासयोगः" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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:[[५.१५ नादत्ते कस्यचि...]]त् |
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:[[५.१६ ज्ञानेन तु तदज्ञानं ...]] |
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:[[५.२६ कामक्रोधवियुक्तां...]] |
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:[[५.२७ स्पर्शान् कृत्वा...]] |
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:[[५.२८ यतेन्द्रियमनोबुद्धिः...]] |
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:[[५.२९ भोक्तारं यज्ञतपसां...]] |
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१५:४४, १९ सेप्टेम्बर् २०११ इत्यस्य संस्करणं
अध्यायस्य सारः
श्लोकानाम् आवलिः
- ५.१ सन्यासं कर्मणां...
- ५.२ सन्यासः कर्मयोगः...
- ५.३ ज्ञेयः स नित्यसं...
- ५.४ साङ्ख्ययोगौ पृथक्...
- ५.५ यत्साङ्ख्यैः प्राप्यते...
- ५.६ सन्यासस्तुमहाबां...
- ५.७ योगयुक्तो विशुद्धां...
- ५.८ नैव किञ्चित् ...
- ५.९ प्रलपन्विसृजन्...
- ५.१० ब्रह्मण्याधाय...
- ५.११ कायेन मनसा...
- ५.१२ युक्तः कर्मफलं...
- ५.१३ सर्वकर्माणि मनसा...
- ५.१४ न कर्तुत्वं न...
- ५.१५ नादत्ते कस्यचि...त्
- ५.१६ ज्ञानेन तु तदज्ञानं ...
- ५.१७ तद्बुद्धयः तदात्मानः...
- ५.१८ विद्याविनयसम्पन्ने...
- ५.१९ इहैव तैर्जितः...
- ५.२० न प्रहृष्येत्प्रियं ...
- ५.२१ बाह्यस्पर्षष्वसक्तां...
- ५.२२ ये हि संस्पर्शजाः...
- ५.२३ शक्नोतीहैव यः...
- ५.२४ योऽन्तः सुखोऽतः...
- ५.२५ लभन्ते ब्रह्मनिर्वां...
- ५.२६ कामक्रोधवियुक्तां...
- ५.२७ स्पर्शान् कृत्वा...
- ५.२८ यतेन्द्रियमनोबुद्धिः...
- ५.२९ भोक्तारं यज्ञतपसां...