"जरामरणमोक्षाय..." इत्यस्य संस्करणे भेदः
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(लघु) ७.२९ जरामरणमोक्षाय... जरामरणमोक्षाय... प्रति प्रविचलित। |
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१६:४९, ७ डिसेम्बर् २०११ इत्यस्य संस्करणं
- जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।
- ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥ २९ ॥
पदच्छेदः
जरामरणमोक्षाय माम् आश्रित्य यतन्ति ये ते ब्रह्म तत् विदुः कृत्स्नम् अध्यात्मं कर्म च आखिलम् ॥ २९ ॥
अन्वयः
ये माम् आश्रित्य जरामरणमोक्षाय यतन्ति ते तत् ब्रह्म कृत्स्नम् अध्यात्मम् अखिलं च कर्म विदुः ।
पदार्थः
- ये = ये मानवाः
- जरामरणमोक्षाय = जरामृत्युहानाय
- माम् आश्रित्य = माम् अवलम्ब्य
- यतन्ति = यतन्ते
- ते = ते मानवाः
- तत् ब्रह्म = प्रसिद्धं परमात्मानम्
- कृत्स्नम् = समग्रम्
- अध्यात्मम् = आत्मविषयम्
- अखिलम् = समस्तम्
- कर्म च = कर्तव्यं च
- विदुः = जानन्ति ।
तात्पर्यम्
ये मानवाः माम् अवलम्ब्य जरामरणविमोक्षाय प्रयतन्ते ते मानवाः तत् परब्रह्म जानन्ति तथा समग्रम् आत्मविषयं कर्तव्यं च जानन्ति ।