"कूडियाट्टम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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११:२०, १८ फेब्रवरी २०१२ इत्यस्य संस्करणं

माणि माधव: चाक्यारः कूटियाट्टे रावणरूपी

संस्कृतनाटकरूपकेषु सर्वपुरातनं प्रथमं च भवति कूटियाट्टम् । केरले चाक्यार् इति ब्राह्मणैः विभागेन अनुष्ठानकलारूपेण अस्य प्रयोगः क्रियते। वनितापात्रानि वनिताभिः एव अभिनय: क्रियते इति विशेषता एव। अधुना युनस्को इति संस्थया संरक्षणीयकलासु अग्रिमस्थानम् अस्यै दत्तम् अस्ति।

मिऴावुकूटियाट्टवाद्यम्

वाद्यम्

मिऴाव् इति किञ्चित् विशिष्टं वाद्योपकरणम् अस्यकृते उपयुज्यते। महत् घटं वत्सस्य चर्मणा दृढं बद्ध्वा तस्य निर्माणं कुर्वन्ति।

प्राचीन संस्कृत नाटकों का पुरातन केरलीय नाट्य रूप कूडियाट्टम कहलाता है । दो हज़ार वर्ष पुराने कूडियाट्टम को युनेस्को ने 'वैश्विक पुरातन कला' के रूप में स्वीकार किया है । यह मंदिर-कला है जिसे चाक्यार और नंपियार समुदाय के लोग प्रस्तुत करते हैं । साधारणतः कूत्तंपलम नामक मंदिर से जुडे नाट्यगृहों में इस कला का मंचन होता है । कूडियाट्टम प्रस्तुत करने के लिए दीर्घकालीन प्रशिक्षण की आवश्यकता है ।

कूडियाट्टम शब्द का अर्थ है - 'संघ नाट्य' अथवा अभिनय अथवा संघटित नाटक या अभिनय । कूडियाट्टम में अभिनय को प्राधान्य दिया जाता है । भारत के नाट्यशास्त्र में अभिनय की चार रीति बताई गयी है - आंगिक, वाचिक, सात्विक और आहार्य । ये चारों रीतियाँ कूडियाट्टम में सम्मिलित रूप में जुडी हैं । कूडियाट्टम में हस्तमुद्राओं का प्रयोग करते हुए विशद अभिनय किया जाता है । इसमें इलकियाट्टम, पकर्न्नाट्टम, इरुन्नाट्टम आदि विशेष अभिनय रीतियाँ भी अपनाई जाती हैं ।

कूडियाट्टम में संस्कृत नाटकों की प्रस्तुति होती है, लेकिन पूरा नाटक प्रस्तुत नहीं किया जाता । प्रायः एक अंक का ही अभिनय किया जाता है । अंकों को प्रमुखता दिय्र जाने के कारण प्रायः कूडियाट्टम अंकों के नाम से जाना जाता है । इसी कारण से विच्छिन्नाभिषेकांक, माया सीतांक, शूर्पणखा अंक आदि नाम प्रचलित हो गये । कूडियाट्टम के लिए प्रयुक्त संस्कृत नाटकों के नाम इस प्रकार हैं - भास का 'प्रतिमानाटकम्', 'अभिषेकम्', 'स्वप्नवासवदत्ता', 'प्रतिज्ञायोगंधरायणम्', 'ऊरुभंगम', 'मध्यमव्यायोगम्', 'दूतवाक्यम' आदि । श्रीहर्ष का 'नागानन्द', शक्तिभद्र का 'आश्चर्यचूडामणि', कुलशेखरवर्मन के 'सुभद्राधनंजयम', 'तपती संवरणम्', नीलकंठ का 'कल्याण सौगंधिकम्', महेन्द्रविक्रमन का 'मत्तविलासम', बोधायनन का 'भगवद्दज्जुकीयम' । नाटक का एक पूरा अंक कूडियाट्टम में प्रस्तुत करने के लिए लगभग आठ दिन का समय लगता है । पुराने ज़माने में 41 दिन तक की मंचीय प्रस्तुति हुआ करती थी । किन्तु आज यह प्रथा लुप्त होगई है । कूत्तंपलम (नाट्यगृह) में भद्रदीप के सम्मुख कलाकार नाट्य प्रस्तुति करते हैं । अभिनय करने के संदर्भ में बैठने की आवश्यकता भी पड़ सकती है । इसीलिए दो-एक पीठ भी रखे जाते हैं । जब कलाकार मंच पर प्रवेश करता है तब यवनिका पकडी जाती है । कूडियाट्टम का प्रधान वाद्य मिष़ाव नामक बाजा है । इडक्का, शंख, कुरुम्कुष़ल, कुष़ितालम् आदि दूसरे वाद्यंत्र हैं ।

विशेष रूप में निर्मित कूत्तंपलम् कूडियाट्टम की परंपरागत रंगवेदी है । कूत्तंपलम मंदिर के प्रांगण ही निर्मित होता था ।

कूत्तंपलम से युक्त मंदिरों के नाम इस तरह हैं -

तिरुमान्धाम कुन्नु

तिरुवार्प

तिरुवालत्तूर (कोटुम्बा)

गुरुवायूर

आर्पुक्कारा

किडन्गूर

पेरुवनम्

तिरुवेगप्पुरा

मूष़िक्कुलम

तिरुनक्करा

हरिप्पाड

चेंगन्नूर

इरिंगालक्कुटा

तृश्शूर वडक्कुंन्नाथ मंदिर

माणि माधव चाक्यार् , 'नाट्यकल्पद्रुमम्' , पी. के. जी. नाम्प्यार, संपादक : डॉ. प्रेम लता शर्मा , संगीत नाटक अक्कादेमी , नयी दिल्ली (१९९१)

डॉ. पी. के. वेणु , ' संस्कृत रंगमंच और कूटियाट्टम् ', केरल की सांस्कृतिक विरासत, संपादक जी. गोपीनाथन, वाणी प्रकाशन नयी दिल्ली (1998).

फलकम्:कूटियाट्टं कलाविदः

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