"यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहम्..." इत्यस्य संस्करणे भेदः
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:'''यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव ।''' |
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:'''येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥ ३५ ॥''' |
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==पदच्छेदः== |
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यत् ज्ञात्वा न पुनः मोहम् एवं ज्ञास्यसि पाण्डव येन भूतानि यशेषेण द्रक्ष्यसि आत्मनि अथो मयि ॥ ३५ ॥ |
यत् ज्ञात्वा न पुनः मोहम् एवं ज्ञास्यसि पाण्डव येन भूतानि यशेषेण द्रक्ष्यसि आत्मनि अथो मयि ॥ ३५ ॥ |
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:पाण्डव = पाण्डुपुत्र ! |
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:यत् ज्ञात्वा = यत् विज्ञाय |
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:पुनः = भूयः |
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१५:३६, १९ सेप्टेम्बर् २०११ इत्यस्य संस्करणं
- यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव ।
- येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥ ३५ ॥
पदच्छेदः
यत् ज्ञात्वा न पुनः मोहम् एवं ज्ञास्यसि पाण्डव येन भूतानि यशेषेण द्रक्ष्यसि आत्मनि अथो मयि ॥ ३५ ॥
अन्वयः
पाण्डव ! यत् ज्ञात्वा पुनः मोहम् एवं न यास्यसि । येन आत्मनि भूतानि अशेषेण द्रक्ष्यसि । अथो मयि । (तत् ज्ञानं तत्त्वदर्शिनः ते उपदेक्ष्यन्ति ।)
पदार्थः
- पाण्डव = पाण्डुपुत्र !
- यत् ज्ञात्वा = यत् विज्ञाय
- पुनः = भूयः
- मोहम् = व्यामोहम्
- एवम् = इत्थम्
- न यास्यसि = न गमिष्यसि
- येन = येन ज्ञानेन
- आत्मनि = स्वस्मिन्
- भूतानि = प्राणिनः
- अशेषेण = समग्रम्
- द्रक्ष्यसि = पश्यसि
- अथो = अनन्तरम्
- मयि = भगवति ।
तात्पर्यम्
अर्जुन ! येन ज्ञानेन भवान् पुनः एतादृशं मोहजालं न आप्नोति, येन आत्मज्ञानेन समवायबुद्ध्या स्वस्मिन् मयि च सर्वान् जीवान् द्रष्टुं शक्नोति तादृशं ज्ञानं तत्त्वदर्शिनः ते उपदेक्ष्यन्ति ।