"राजविद्याराजगुह्ययोगः" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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:[[९.१५ ज्ञानयज्ञेन चापि....]] |
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:[[९.१६ अहं क्रतुरहं....]] |
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:[[९.१८ गतिर्भर्ता प्रभुः....]] |
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:[[९.१९ तपाम्यहमहं....]] |
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:[[९.३३ किं पुनर्ब्राह्मणाः....]] |
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:[[९.३४ मन्मना भव....]] |
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==सम्बद्धसम्पर्कतन्तुः== |
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*[http://wikisource.org/wiki/भगवद्गीता भगवद्गीता] (मूलश्लिकाः) |
*[http://wikisource.org/wiki/भगवद्गीता भगवद्गीता] (मूलश्लिकाः) |
०७:४८, २० सेप्टेम्बर् २०११ इत्यस्य संस्करणं
अध्यायस्य सारः
श्लोकानाम् आवलिः
- ९.१ इदं तु ते गुह्यतं....
- ९.२ राजविद्या राजं ....
- ९.३ अश्रद्धधानाः....
- ९.४ मया ततमिदं....
- ९.५ न च मत्स्थानि....
- ९.६ यथाकाशस्थितः....
- ९.७ सर्वभूतानि कौं....
- ९.८ प्रकृतिं स्वामवं....
- ९.९ न च मां तानि....
- ९.१० मयाध्यक्षेण प्रकृं....
- ९.११ अवजानन्ति मां....
- ९.१२ मोघाशा मोघं ....
- ९.१३ महात्मानस्तु मां....
- ९.१४ सततं कीर्तयन्तो....
- ९.१५ ज्ञानयज्ञेन चापि....
- ९.१६ अहं क्रतुरहं....
- ९.१७ पितामह्स्य जग....
- ९.१८ गतिर्भर्ता प्रभुः....
- ९.१९ तपाम्यहमहं....
- ९.२० त्रैविद्या मां ....
- ९.२१ ते तं भुक्त्वा ....
- ९.२२ अनन्याश्चिन्तयन्तो....
- ९.२३ येऽप्यन्यदेवताः....
- ९.२४ अहं हि सर्वं....
- ९.२५ यान्ति देवव्रताः....
- ९.२६ पत्रं पुष्पं फलं....
- ९.२७ यत्करोषि यदं....
- ९.२८ शुभाशुभफलैः....
- ९.२९ समोहं सर्वभूतेषु....
- ९.३० अपि चेत्सु....
- ९.३१ क्षिप्रं भवति धर्मा....
- ९.३२ मां हि पार्थ....
- ९.३३ किं पुनर्ब्राह्मणाः....
- ९.३४ मन्मना भव....