"राजविद्याराजगुह्ययोगः" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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१६:०८, ७ डिसेम्बर् २०११ इत्यस्य संस्करणं

गीतोपदेशः

अध्यायस्य सारः

श्लोकानाम् आवलिः

९.१ इदं तु ते गुह्यतं....
९.२ राजविद्या राजं ....
९.३ अश्रद्धधानाः....
९.४ मया ततमिदं....
९.५ न च मत्स्थानि....
९.६ यथाकाशस्थितः....
९.७ सर्वभूतानि कौं....
९.८ प्रकृतिं स्वामवं....
९.९ न च मां तानि....
९.१० मयाध्यक्षेण प्रकृं....
भगवद्गीतायाः अध्यायाः
  1. अर्जुनविषादयोगः
  2. सांख्ययोगः
  3. कर्मयोगः
  4. ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः
  5. कर्मसंन्यासयोगः
  6. आत्मसंयमयोगः
  7. ज्ञानविज्ञानयोगः
  8. अक्षरब्रह्मयोगः
  9. राजविद्याराजगुह्ययोगः
  10. विभूतियोगः
  11. विश्वरूपदर्शनयोगः
  12. भक्तियोगः
  13. क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगः
  14. गुणत्रयविभागयोगः
  15. पुरुषोत्तमयोगः
  16. दैवासुरसंपद्विभागयोगः
  17. श्रद्धात्रयविभागयोगः
  18. मोक्षसंन्यासयोगः
९.११ अवजानन्ति मां....
९.१२ मोघाशा मोघं ....
९.१३ महात्मानस्तु मां....
९.१४ सततं कीर्तयन्तो....
९.१५ ज्ञानयज्ञेन चापि....
९.१६ अहं क्रतुरहं....
९.१७ पितामह्स्य जग....
९.१८ गतिर्भर्ता प्रभुः....
९.१९ तपाम्यहमहं....
९.२० त्रैविद्या मां ....
९.२१ ते तं भुक्त्वा ....
९.२२ अनन्याश्चिन्तयन्तो....
९.२३ येऽप्यन्यदेवताः....
९.२४ अहं हि सर्वं....
९.२५ यान्ति देवव्रताः....
९.२६ पत्रं पुष्पं फलं....
९.२७ यत्करोषि यदं....
९.२८ शुभाशुभफलैः....
९.२९ समोहं सर्वभूतेषु....
९.३० अपि चेत्सु....
९.३१ क्षिप्रं भवति धर्मा....
९.३२ मां हि पार्थ....
९.३३ किं पुनर्ब्राह्मणाः....
९.३४ मन्मना भव....

सम्बद्धसम्पर्कतन्तुः