"श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञात्..." इत्यस्य संस्करणे भेदः
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:'''श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप ।''' |
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:'''सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ ३३ ॥''' |
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श्रेयान् द्रव्यमयात् यज्ञात् ज्ञानयज्ञः परन्तप सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ ३३ ॥ |
श्रेयान् द्रव्यमयात् यज्ञात् ज्ञानयज्ञः परन्तप सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ ३३ ॥ |
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:परिसमाप्यते = पर्यवस्यति । |
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१५:३६, १९ सेप्टेम्बर् २०११ इत्यस्य संस्करणं
- श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप ।
- सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ ३३ ॥
पदच्छेदः
श्रेयान् द्रव्यमयात् यज्ञात् ज्ञानयज्ञः परन्तप सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ ३३ ॥
अन्वयः
परन्तप ! द्रव्यमयात् यज्ञात् ज्ञानयज्ञः श्रेयान् । पार्थ ! सर्वं कर्म ज्ञाने अखिलं परिसमाप्यते ।
पदार्थः
- परन्तप = शत्रुतापक !
- द्रव्यमयात् = द्रव्यसाध्यात्
- यज्ञात् = यागात्
- ज्ञानयज्ञः = आत्मज्ञानरूपो यज्ञः
- श्रेयान् = वरीयान्
- पार्थ = अर्जुन !
- सर्वम् = समस्तम्
- कर्म = यज्ञरूपं कर्म
- ज्ञाने = आत्मज्ञाने
- अखिलम् = फलसहितम्
- परिसमाप्यते = पर्यवस्यति ।
तात्पर्यम्
हे अर्जुन ! सांसारिकवस्तुभिः सिद्धात् यज्ञात् आत्मज्ञानरूपो यज्ञः श्रेष्ठः भवति । यतः सर्वाणि कर्माणि ज्ञाने एव परिसमाप्तिं गच्छन्ति, फलत्वात् ।