"इहैव तैर्जितः सर्गो..." इत्यस्य संस्करणे भेदः
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:'''इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।''' |
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:'''निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ १९ ॥''' |
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इह एव तैः जितः सर्गः येषां साम्ये स्थितं मनः निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ १९ ॥ |
इह एव तैः जितः सर्गः येषां साम्ये स्थितं मनः निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ १९ ॥ |
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१५:४३, १९ सेप्टेम्बर् २०११ इत्यस्य संस्करणं
- इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
- निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ १९ ॥
पदच्छेदः
इह एव तैः जितः सर्गः येषां साम्ये स्थितं मनः निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ १९ ॥
अन्वयः
येषां साम्ये मनः स्थितं तैः सर्गः इह एव जितः । समं हि ब्रह्म निर्दोषम् । तस्मात् ते ब्रह्मणि स्थिताः ।
पदार्थः
- येषाम् = ज्ञानिनाम्
- साम्ये = गोब्राह्मणशुनकादौ समानतायाम्
- मनः = चित्तम्
- स्थितम् = स्थितम्
- तैः = समदर्शिभिः
- सर्गः = संसारः
- इह एव = अस्मिन् भूलोके एव
- जितः = विजितः
- हि = यस्मात्
- समम् = सर्वेषु अपि प्राणिषु समत्वेन स्थितम्
- ब्रह्म = परवस्तु
- निर्दोषम् = दोषरहितम्
- तस्मात् = अतः
- ते = ज्ञानिनः
- ब्रह्मणि = परमात्मनि
- स्थिताः = अवस्थिताः ।
तात्पर्यम्
अयम् उच्चः अयं नीचः इति बुद्ध्यभावात् ये सर्वेषु अपि प्राणिषु समानाः भवन्ति ते जीवन्तः एव अस्मिन् लोके सर्वथा विनष्टसंसारबन्धाः सन्ति । इदं ब्रह्म निर्विकारं सर्वेषु प्राणिषु समानं च । तस्मात् ते तत्रैव सर्वदा भवितुम् इच्छन्ति ।