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सदस्यसम्भाषणम्:Aacharyaanil

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अन्यक्षेत्रे कॄतं पापं पुण्यक्षेत्रे विनश्यति ।

पुण्यक्षेत्रे कॄतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ॥

अन्यक्षेत्र में किए पाप पुण्य क्षेत्र में धुल जाते है । पर पुण्य क्षेत्र में किए पाप तो वज्रलेप की तरह होते है र् अक्षमस्व ॥

असारे खलु संसारे सारं श्वशुरमन्दिरम् | हरो हिमालये शेते हरि: शेते महोदधौ //

इस सारहीन जगत में केवल श्वशुर का घर रहने योग्य है | इसी कारण शंकर भगवान हिमालय में रहते है तथा विष्णू भगवान समुद्र में रहते है |

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