सदस्यः:Nivedita2015/प्रयोगपृष्ठम्/2
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Nivedita2015/प्रयोगपृष्ठम्/2 | |
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श्लोकसङ्ख्या | २ |
श्लोकच्छन्दः | पादाकुलकम् |
पूर्वश्लोकः | भज गोविन्दम् |
अग्रिमश्लोकः | नारीस्तनभरनाभीदेशम् |
मूढ जहीहि धनागमतृष्णाम् इत्यनेन श्लोकेन भगवान् आदिशङ्कराचार्यः .... कर्तुं कथयति । .... इति वदति ।
श्लोकः
[सम्पादयतु]- मूढ जहीहि धनागमतृष्णां
- कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम् |
- यल्लभसे निजकर्मोपात्तं
- वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ||२||
पदच्छेदः
[सम्पादयतु]मूढ, जहीहि, धनागमतृष्णाम्, कुरु, सद्बुद्धिम्, मनसि, वितृष्णाम्, यत्, लभसे, निजकर्मोपात्तम्, वित्तम्, तेन, विनोदय, चित्तम्
अन्वयः
[सम्पादयतु]हे मूढ | (त्वं) धनागमतृष्णां जहीहि | (त्वं) वितृष्णां सद्बुद्धिं मनसि कुरु | निजकर्मोपात्तम् यत् वित्तम् (त्वं) लभसे, तेन (त्वं) चित्तं विनोदय |
अर्थः
[सम्पादयतु]हे मूढ | त्वं धनागमतृष्णां परित्यज्य तृष्णारहितां (वैराग्यसंपन्नां) सद्बुद्धिं मनसि विधेहि | निजकर्मभिरार्जितेन पुण्यधनेन मनो विनोदय |
पदपरिचयः
[सम्पादयतु]- सम्बोधनपदम् = मूढ [ अ. पुं. संप्र. एक. ]
- प्रथमवाक्यम्
- क्रियापदम् = जहीहि [ हाक् “ओहाक् त्यागे” पर. लोट्. मपु. एक. ]
- कर्मपदम् = धनागमतृष्णाम् [ आ. स्त्री. द्वि. एक. ]
- कर्तृपदम् = (त्वम्)
- द्वितीयवाक्यम्
- क्रियापदम् = कुरु [ कृ “डुकृञ् करणे” उभ. (अत्र पर.) लोट्. मपु. एक. ]
- कर्मपदम् = सद्बुद्धिम् [ आ. स्त्री. द्वि. एक. ]
- कर्मविशेषणम् = वितृष्णाम् [ आ. स्त्री. द्वि. एक. ]
- अधिकरणपदम् = मनसि [ स. नपुं. स. एक. ]
- कर्तृपदम् = (त्वम्)
- तृतीयवाक्यम्
- “यत्” वाक्यांश:
- क्रियापदम् = लभसे [ लभ् “डुलभष् प्राप्तौ” आत्म. लट्. मपु. एक. ]
- कर्मपदम् = वित्तम् [ अ. नपुं. द्वि. एक. ]
- कर्मविशेषणम् = निजकर्मोपात्तम् [ अ. नपुं. द्वि. एक. ]
- कर्मविशेषणम् = यत् [ यद् द. नपुं. प्र. एक. ]
- कर्तृपदम् = (त्वम्)
- “तेन” वाक्यांश:
- करणवाचकपदम् = तेन [ द. नपुं. तृ. एक. ]
- क्रियापदम् = विनोदय [ वि + नुद् “णुद प्रेरणे” + णिच् प्रत्यय: | पर. लोट्. मपु. एक. | लट् - नुदति / नुदते, णिचि – नोदयति / नोदयते ]
- णिजन्त-प्रयोज्यकर्ता-सूचक-कर्मपदम् = चित्तम् [ अ. नपुं. द्वि. एक. ]
- णिजन्त-प्रयोजककर्ता-सूचक-कर्तृपदम् = (त्वम्)
- “यत्” वाक्यांश:
व्याकरणम्
[सम्पादयतु]- सन्धि:
- यल्लभसे = यत् + लभसे – परसवर्णसन्धि:
- समास:
- धनागमतृष्णाम् = धनस्य आगम: धनागम: – षष्ठीतत्पुरुष: | धनागमे तृष्णा धनागमतृष्णा - सप्तमीतत्पुरुषसमास: | ताम् |
- सद्बुद्धिम् = सती बुद्धि: सद्बुद्धि: – विशेषणपूर्वपदकर्मधारय: | ताम् |
- वितृष्णाम् = विगता तृष्णा वितृष्णा – प्रादिसमास: | ताम् |
- निजकर्मोपात्तम्
- निजस्य कर्म निजकर्म - षष्ठीतत्पुरुष: |
- निजकर्मणा उपात्तम् निजकर्मोपात्तम् – तृतीयातत्पुरुष: |
सम्बद्धाः लेखाः
[सम्पादयतु]बाह्यसम्पर्कन्तुः
[सम्पादयतु]सन्दर्भः
[सम्पादयतु]can't use in sandboxभज गोविन्दम्]]