सदस्यः:Samkeerthana/स्त्रोतसशारीरम्
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स्त्रोतसशारीरम्
[सम्पादयतु]आयुर्वेद बीमारी का निदान करने के लिए आठ तरीके की है, कहा जाता है नादी (पल्स), मूत्र, माला ,जिह्व, शब्द, स्पर्श, ड्रक , आक्रुति (सूरत)। आयुर्वेद शस्त्रे यथद्र्ष्ट्या आयुर्वेदाचार्यै: वर्णनम् क्रुतमस्ति तेषामाधुनिकै: सह
सम्तुलम् दुष्करमेवास्ति । ताद्रुशीस्थिति: स्त्रोतसाम् वर्णनेअपि वर्तते।
आचार्य चरक मतानुसारम् स्त्रोतस शब्धस्य व्युत्पत्ति: १) स्त्रोताम्सि खलु परिणाममापध्यमानानाम् धातूनामभिवाहीनि भवन्त्यनार्थेन २) स्त्र्वणात् - स्त्रोताम्सि चरकटिकाकारा: व्युत्पत्तिरेषा सुस्पष्टा कुर्वन्ति।
यथा:
१) चक्रपाणि - स्त्र्वणादिति रसादेरेव पोष्यस्य स्त्रवणात् । २) कविराज गम्गाधर: - स्त्रवणाद्रसादि स्त्रावपथत्वात् स्त्रोताम्स्युच्यन्ते। ३) कविराज गणनाथजी - स्त्रवणम् स्पन्दनम् ल। ४) आचर्य: डल्हण: - स्त्रोताम्सि खलु रसादेरेव पोष्यस्य स्त्रवणम् प्राणान्न्वारिरसशेणितमाम्समेदादीनाम् च वहनम् कुर्वन्ति।
रोग कारण की अवधारणा
[सम्पादयतु]यह माना जाता कि जब तीन के सामान्य संतुलन - वादम्, पित्तम्, कबम् - परेशान , बीमारी के कारण होता । कारकों इस संतुलन को प्रभावित करने के लिए माना पर्यावरण, जलवायु परिस्थितियों, आहार, शारीरिक गतिविधियों, तनाव । ४ :२:१ सामान्य परिस्थितियों के अंतर्गत, वादम्, पित्तम्, कबम् के बीच का अनुपात ४ कर रहे त ।
चरकमतानुसारम्
[सम्पादयतु]आचर्य: चरक: कथति 'स्त्रोतोमयोअय' पुरुष: । यावन्त: पुरुषे मूर्तमन्तोभावविशेषास्तावन्त: एवास्मिन् स्त्रोतसाम् प्रकार विशेषा: स्त्रोतसाम् सम्ख्येया वर्तते। तथपि व्यावहारिक द्रुष्ट्या विमानस्थाने त्रयोदश एवम् गर्भप्रकरणे आर्तववहेतिरित्या चरकमतेन १४- चतुर्दश स्त्रोतासि सन्ति।
प्राणवहस्त्रोतस | उदकवहस्त्रोतस | अन्नवहस्त्रोतस |
रसवहस्त्रोतस | रक्तवहस्त्रोतस | माम्सवहस्त्रोतस |
मेदोवहस्त्रोतस | अस्थिवहस्त्रोतस | मज्जावहस्त्रोतस |
शुक्रवहस्त्रोतस | मुत्रवहस्त्रोतस | पुरीवहस्त्रोतस |
स्वेदवहस्त्रोतस | आर्तव्वहस्त्रोतस |
स्त्रोतसाम् स्वरुपम्।
[सम्पादयतु]मूलात् रवादन्तरम् देहे प्रस्रूतम् त्वभिवाहि यत्। स्त्रोतस्तदिति विनेयम् सिराधमनीविवर्जितम् । एवम् दर्शनेने स्त्रोतसाम् स्वरुपम् यथा - (१) यस्यधातोरभिवहनम् कुर्वन्ति तस्य वर्ण्मेवम् आक्रुतिम् च धारयन्ति। (२) स्त्रोतासि गोलाक्रूतय: चीपटा: एवम् सूक्ष्मरूपा: वर्तन्ते।
पन्चकर्मा
[सम्पादयतु]आयुर्वेद, पंचकर्म , तकनीक के अनुसार (देवनागरी: पंचकर्म)) शरीर से विषैले तत्वों को समाप्त । पंचकर्म वामन, विरेचन, बस्ती, नस्या, रक्तमोक्षन च शामिल । यह एक प्रारंभि क कदम के रूप में पुर्वकर्मा से पहले , पस्चत्कर्म, पेयदिकर्मा द्वारा पीछा किया गच्चति।
स्त्रोतसमूल:
[सम्पादयतु]क्रम | स्त्रोतसनाम् | चरकानुसारम् | सुश्ह्रतानुसारम् |
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(१) | प्राणवहस्त्रोतस | ह्रुदय, महास्त्रोतस: | ह्रुदय रसवाहिन्यश्च धमन्य: |
(२) | अन्नवहस्त्रोतस | आमाशय: वामपार्श्वश्च | आमाशय: अन्नवाहिन्यश्च धमन्य: |
(३) | उदकवहस्त्रोतस | तालु क्लोम च | तालु क्लोम च |
(४) | रसवह स्त्रोतस | ह्रुदयम्, दशधमन्यश्च | ह्रुदयम् रसवाहिन्यश्च धमन्य: |
(५) | रक्तवह स्त्रोतस | यक्रुत् प्लीहानौ | यक्रुत् प्लीहानौ, रक्तवाहिन्यश्च धमन्य: |
(६) | मम्सवह स्त्रोतस | स्नयुत्वक्च् | स्नायुत्वचम् रक्तवहाश्च धमन्य: |
(७) | मोदोवह स्त्रोतस | नितम्ब प्रदेश: वपावहश्च | कटीव्रूक्कौ च |
(८) | अस्थिवह स्त्रोतस | मेद: जघनप्रदेश: | - |
(९) | मज्जवह स्त्रोतस | अस्थि सम्ग्घयश्च | - |
(१०) | शुक्रवह स्त्रोतस | व्रुषणम् मेढरश्च | स्तनौ व्रुषणौ च |
(११) | मूत्रवह स्त्रोतस | बस्ति: वक्शनम् च | बस्तिमेढम् च |
(१२) | पुरीषवह स्त्रोतस | पक्वाशय: स्थूलगुदम् च | पक्वाशयो गुदम् च |
(१३) | स्वेदवह स्त्रोतस | मेद: रोमकोपाश्च | - |
(१४) | आर्तववह स्त्रोतस | आर्तववहा: धमन्य: | गर्बाशय आर्तववाहिन्यश्च |
शिराधमनी स्त्रोत: सु भेद:
[सम्पादयतु]शिराधमनी स्त्रोतसाम् मिथ: भेद: निम्न कोष्टकानुस्तरम् विवर्ण्यते।
क्रम | भेद | शिरा | धमनी | स्त्रोतस |
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(१) | लक्षणाभिन्नता | वातादि दोष: वाहिन्य: ,नीलश्वेतवर्णयुक्ता: | शब्दादिवाहिन्य: , रक्तवर्णयुक्ता: | धातु मल द्र्व्यादि , वहन्न्त:, अनुरूपवर्णयुक्ता: |
(२) | सम्खयाभिन्नता | मूलशिरा: , ७०० | मूलधमन्य:, २४ | मुल स्त्रोतस , ११ * २=२२ वा १४ |
(३) | कर्मभिन्नता | अशुद्धम् रक्तम् , त्रिदोषवाहिन्य: | शुद्धरसरक्त , शब्द वाहिन्य: | द्रव्णयुक्ता: |
(४) | स्पदनक्रुत भेद: | स्पदनरहिता: | स्पदनयुक्ता: | स्त्रवणयुक्ता: |
(५) | आकार भेद: | अवकाशयुक्ता: | सुषिरा: | सावकाशा: सुषिराश्च: |
(६) | सम्बध भेद: | स्वाशयै: सह सम्बन्धा: | ह्रुदयेन सह निबद्धा: | स्वधतु मलादिभि: निबद्धा: |