अनुष्टुप्छन्दः
अनुष्टुभ्।
अनुष्टुप् इति शब्दस्य त्रयः प्रयोगाः सन्ति–
- १. एकवृत्तिकुटुम्बं यस्य वृत्तीनां पत्सु अष्टौ अक्षराणि सन्ति।
- २. श्लोकवृत्तिः
- ३. वेदानाम् अनुष्टुप् छन्दः
अनुष्टुब्वृत्तयः
[सम्पादयतु]सर्वेषाम् अनुष्टुभ्वृत्तीनाम् पत्सु अष्ठौ अक्षराणि सन्ति। छन्दोमञ्जर्यां श्लोकवृत्तिना विना ताः दर्श्यन्तेऽधः–
| वृत्तयः | लक्षणानि | |||||||
|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
| चित्रपदा | ऽ | । | । | ऽ | । | । | ऽ | × |
| माणवकम् | ऽ | । | । | ऽ | ऽ | । | । | × |
| विद्युन्माला | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | × |
| समानिका | ऽ | । | ऽ | । | ऽ | । | ऽ | । |
| प्रमाणिका | । | ऽ | । | ऽ | । | ऽ | । | × |
| गजगतिः | । | । | । | ऽ | । | । | । | × |
यत्र '।' लघु भवति 'ऽ' गुरु भवति '×' च द्वयोरपि एकम् अस्ति ।
श्लोकः
[सम्पादयतु]श्लोकस्य सामान्यलक्षणम् इत्थम्–
- पञ्चमं लघु सर्वत्र सप्तमं द्विचतुर्थयोः।
- गुरुषष्टञ्च पादानां चतुर्णां स्यादनुष्टुभि॥
अर्थात् श्लोकानुष्टुभि चतुर्षु अपि पादेषु पञ्चमाक्षरं लघु षष्टाक्षरं च गुरु भवेताम्, अपि च द्वितीयपादस्य सप्तमाक्षरं लघु भवेत्। प्रतिपादे अन्तिमाक्षरं गुरु भवति।
एतत्तु केवलं सामान्यपथ्यालक्षणं। सत्येन लक्षणं संकीर्णतरम् उ। एतत् लेखनाधारं श्लोकवृत्तेः संपूर्णलक्षणं दर्शयति–
| नामानि | प्रथमपादः | द्वितीयपादः | |||||||||||||||
|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
| १ | २ | ३ | ४ | ||||||||||||||
| पथ्या | × | × | × | × | । | ऽ | ऽ | × | × | × | × | × | । | ऽ | । | × | |
| विपुलाः | नविपुला | × | × | × | ऽ | । | । | । | × | ||||||||
| तविपुला | × | × | × | ऽ | ऽ | ऽ | । | × | |||||||||
| भविपुला | × | ऽ | । | ऽ | ऽ | । | । | × | |||||||||
| रविपुला | × | × | × | ऽ | ऽ | । | ऽ | × | |||||||||
| मविपुला | × | ऽ | । | ऽ | ऽ, | ऽ | ऽ | × | |||||||||
| सविपुला | × | । | ऽ | ऽ | । | । | ऽ | × | |||||||||
यत्र '।' लघु भवति 'ऽ' गुरु भवति '×' च द्वयोरपि एकम् अस्ति । यत्र च ',' इति विच्छित्तिं दर्शयति॥
वेदानुष्टुप्
[सम्पादयतु]वेदैः अन्योऽनुष्टप्छन्दः प्रचक्रे। तस्य लक्षणम् इत्थम्–
| पादः | |||||||
|---|---|---|---|---|---|---|---|
| १ | २ | ||||||
| × | ऽ | × | ऽ | । | ऽ | । | × |
| × | । | ऽ | ऽ | ||||
यत्र '।' लघु भवति 'ऽ' गुरु भवति '×' च द्वयोरपि एकम् अस्ति।
परन्तु यथा महर्षिपाणिनिनोक्तः तथा छन्दसि बहुलम् वर्तते। अत एतत् न सदा अनुरुध्यते॥